केदारनाथ मन्दिर - Kedarnath Temple

केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक प्रमुख हिंदू तीर्थस्थल है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और चार धामों में से एक है। यह हिमालय पर्वत श्रृंखला में स्थित है और समुद्र तल से लगभग 3,583 मीटर (11,755 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है।

केदारनाथ मन्दिर - Kedarnath Temple

पौराणिक कथा


इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना का इतिहास संक्षेप में यह है कि हिमालय के केदार शृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं।

पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।

निर्माण


केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित हिन्दुओं का प्रसिद्ध मंदिर है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चारधाम और पंचकेदार में से भी एक है। यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्‍य ही दर्शन के लिए खुलता है। पत्‍थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डवों के पौत्र महाराजा जन्मेजय ने कराया था। यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया।

जून २०१३ के दौरान भारत के उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश राज्यों में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहा। मंदिर के आसपास की मकानें बह गई । इस ऐतिहासिक मन्दिर का मुख्य हिस्सा एवं सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित रहे लेकिन मन्दिर का प्रवेश द्वार और उसके आस-पास का इलाका पूरी तरह तबाह हो गया। केदारनाथ मंदिर एक अनसुलझी पहेली है !!

केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया था इसके बारे में बहुत कुछ कहा जाता है। पांडवों से लेकर आदि शंकराचार्य तक। आज का विज्ञान बताता है कि केदारनाथ मंदिर शायद 8वीं शताब्दी में बना था। यदि आप ना भी कहते हैं, तो भी यह मंदिर कम से कम 1200 वर्षों से अस्तित्व में है। केदारनाथ की भूमि 21वीं सदी में भी बहुत प्रतिकूल है। एक तरफ 22,000 फीट ऊंची केदारनाथ पहाड़ी, दूसरी तरफ 21,600 फीट ऊंची कराचकुंड और तीसरी तरफ 22,700 फीट ऊंचा भरतकुंड है। इन तीन पर्वतों से होकर बहने वाली पांच नदियां हैं मंदाकिनी, मधुगंगा, चिरगंगा, सरस्वती और स्वरंदरी। इनमें से कुछ इस पुराण में लिखे गए हैं।

 यह क्षेत्र "मंदाकिनी नदी" का एकमात्र जलसंग्रहण क्षेत्र है। यह मंदिर एक कलाकृति है I कितना बड़ा असम्भव कार्य रहा होगा ऐसी जगह पर कलाकृति जैसा मन्दिर बनाना जहां ठंड के दिन भारी मात्रा में बर्फ हो और बरसात के मौसम में बहुत तेज गति से पानी बहता हो। आज भी आप गाड़ी से उस स्थान तक नही जा सकते I फिर इस मन्दिर को ऐसी जगह क्यों बनाया गया? ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में 1200 साल से भी पहले ऐसा अप्रतिम मंदिर कैसे बन सकता है ? 1200 साल बाद, भी जहां उस क्षेत्र में सब कुछ हेलिकॉप्टर से ले जाया जाता है I JCB के बिना आज भी वहां एक भी ढांचा खड़ा नहीं होता है। यह मंदिर वहीं खड़ा है और न सिर्फ खड़ा है, बल्कि बहुत मजबूत है। हम सभी को कम से कम एक बार यह सोचना चाहिए।

वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि यदि मंदिर 10वीं शताब्दी में पृथ्वी पर होता, तो यह "हिम युग" की एक छोटी अवधि में होता। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी, देहरादून ने केदारनाथ मंदिर की चट्टानों पर लिग्नोमैटिक डेटिंग का परीक्षण किया। यह "पत्थरों के जीवन" की पहचान करने के लिए किया जाता है। परीक्षण से पता चला कि मंदिर 14वीं सदी से लेकर 17वीं सदी के मध्य तक पूरी तरह से बर्फ में दब गया था। हालांकि, मंदिर के निर्माण में कोई नुकसान नहीं हुआ। 2013 में केदारनाथ में आई विनाशकारी बाढ़ को सभी ने देखा होगा। इस दौरान औसत से 375% अधिक बारिश हुई थी।

 मंदिर के अक्षुण खड़े रहने के पीछे : जिस दिशा में इस मंदिर का निर्माण किया गया है व जिस स्थान का चयन किया गया है I ये ही प्रमुख कारण हैं I दूसरी बात यह है कि इसमें इस्तेमाल किया गया पत्थर बहुत सख्त और टिकाऊ होता है। खास बात यह है कि इस मंदिर के निर्माण के लिए इस्तेमाल किया गया पत्थर वहां उपलब्ध नहीं है, तो जरा सोचिए कि उस पत्थर को वहां कैसे ले जाया जा सकता था। उस समय इतने बड़े पत्थर को ढोने के लिए इतने उपकरण भी उपलब्ध नहीं थे। इस पत्थर की विशेषता यह है कि 400 साल तक बर्फ के नीचे रहने के बाद भी इसके "गुणों" में कोई अंतर नहीं है। 

आज विज्ञान कहता है कि मंदिर के निर्माण में जिस पत्थर और संरचना का इस्तेमाल किया गया है, तथा जिस दिशा में बना है उसी की वजह से यह मंदिर इस बाढ़ में बच पाया। केदारनाथ मंदिर "उत्तर-दक्षिण" के रूप में बनाया गया है। जबकि भारत में लगभग सभी मंदिर "पूर्व-पश्चिम" हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि मंदिर "पूर्व-पश्चिम" होता तो पहले ही नष्ट हो चुका होता। या कम से कम 2013 की बाढ़ में तबाह हो जाता। लेकिन इस दिशा की वजह से केदारनाथ मंदिर बच गया है। इसलिए, मंदिर ने प्रकृति के चक्र में ही अपनी ताकत बनाए रखी है।

केदारनाथ यात्रा


केदारनाथ धाम की यात्रा उत्तराखंड की पवित्र छोटा 5 धाम यात्रा के महत्वपूर्ण चार मंदिरों में से एक है। छोटा चार धाम यात्रा हर वर्ष आयोजित की जाती है। केदारनाथ यात्रा के अलावा अन्य मदिर बद्रीनाथ, गंगोत्री, और यमुनोत्री हैं। केदारनाथ यात्रा में शामिल होने के लिए वर्ष मदिर के खुलने की तिथि तय की जाती है। मंदिर के खुलने की तिथि हिंदू पंचांग की गणना के बाद ऊखी

केद की उद्घाटन तिथि अक्षय तृतीया के शुभ दिन और महा शिवरात्रि पर हर साल घोषित की जाती है। और केदारनाथ मंदिर की समापन तिथि हर वर्ष नवंबर के आसपास दिवाली त्योहार के बाद भाई दूज के दिन होती है। इसके बाद मंदिर के द्वार शीत काल के लिए बंद कर दिए जाते हैं।

सुझाव:


  1. स्वास्थ्य जांच:  ट्रेकिंग से पहले अपने स्वास्थ्य की जांच करवा लें, क्योंकि यह मार्ग कठिन हो सकता है।

  2. पंजीकरण:  उत्तराखंड सरकार द्वारा यात्रा के लिए पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। यात्रा से पहले ऑनलाइन पंजीकरण करवा लें।

  3. मौसम का ध्यान रखें:  यात्रा की योजना बनाते समय मौसम की जानकारी लें और उसी अनुसार तैयारी करें।

  4. स्थानीय प्रशासन के निर्देशों का पालन करें:  यात्रा के दौरान स्थानीय प्रशासन और सुरक्षाकर्मियों के निर्देशों का पालन अवश्य करें।

यात्रा की योजना बनाने से पहले ताजगी जानकारी के लिए उत्तराखंड पर्यटन की आधिकारिक वेबसाइट या संबंधित अधिकारियों से संपर्क करें।

जानकारियां - Information
स्थापना पांडवों
निर्माण पाण्डव वंश के जनमेजय आदि पुरुष
द्वारा उद्घाटन -
समर्पित भगवान वृषभनाथ
देख-रेख संस्था श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति
फोटोग्राफी नहीं
नि:शुल्क प्रवेश नहीं, केदारनाथ मंदिर की यात्रा के लिए पहले से बुकिंग करवाना सलाहनीय है।
समय सुबह 4:30 बजे से रात 9:00 बजे तक
पूजा का समय

मंगला आरती: सुबह 4:00 बजे 

महाभिषेक पूजा: सुबह 4:30 बजे से 7:00 बजे तक 

शृंगार दर्शन: सुबह 7:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक

भोग आरती: दोपहर 12:00 बजे से 3:00 बजे तक संध्या आरती:  शाम 6:00 बजे से 7:30 बजे तक

घूमने का सबसे अच्छा समय

सितंबर से अक्टूबर

वेबसाइट https://badrinath-kedarnath.gov.in/
फोन +91-1382-262185, +91-1382-262276

कैसे पहुचें - How To Reach
पता केदारनाथ, रुद्रप्रयाग जिला, उत्तराखंड, पिन कोड: 246445, भारत
सड़क/मार्ग

दिल्ली से गौरीकुंड: दिल्ली से गौरीकुंड की दूरी लगभग 450 किलोमीटर है। आप दिल्ली से ऋषिकेश होते हुए रुद्रप्रयाग और फिर गौरीकुंड पहुँच सकते हैं। दिल्ली से ऋषिकेश तक बस और टैक्सी सेवाएं नियमित रूप से चलती हैं।
ऋषिकेश/हरिद्वार से गौरीकुंड: ऋषिकेश या हरिद्वार से गौरीकुंड तक सीधी बसें और टैक्सियाँ मिलती हैं। यह यात्रा लगभग 8-10 घंटे की हो सकती है।

रेलवे स्टेशन ऋषिकेश से गौरीकुंड: ऋषिकेश से गौरीकुंड तक टैक्सी या बस सेवाएं उपलब्ध हैं। यह दूरी लगभग 210 किलोमीटर है।
हवा मार्ग

जॉली ग्रांट हवाई अड्डे से रुद्रप्रयाग/गौरीकुंड: जॉली ग्रांट हवाई अड्डे से गौरीकुंड तक टैक्सी या बस सेवाएं उपलब्ध हैं। यह दूरी लगभग 240 किलोमीटर है।
हेलीकॉप्टर सेवा: गौरीकुंड या फाटा से केदारनाथ तक हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है।

ट्रेकिंग गौरीकुंड से केदारनाथ: गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर तक 16 किलोमीटर की ट्रेकिंग करनी होती है। यह ट्रेकिंग मार्ग काफी सुंदर और धार्मिक महत्व का है। मार्ग पर कई ठहराव और भोजन की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
निर्देशांक 9.0669° E / 30.7352° N

केदारनाथ मन्दिर - गूगल के मानचित्र पर