वैष्णो देवी मंदिर - Vaishno Devi Temple
ऐसा कहा जाता है कि एक प्रसिद्ध हिंदू तांत्रिक भैरों नाथ ने युवा वैष्णो देवी को एक कृषि मेले में देखा और उसके प्यार में पागल हो गए। वैष्णो देवी अपने कामुक अग्रिमों से बचने के लिए त्रिकुटा पहाड़ियों में भाग गईं, बाद में उन्होंने दुर्गा का रूप धारण किया और एक गुफा में अपनी तलवार से उनका सिर काट दिया।
पौराणिक कथा
मंदिर के संबंध में कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं। एक बार त्रिकुटा की पहाड़ी पर एक सुंदर कन्या को देखकर भैरवनाथ उससे पकड़ने के लिए दौड़े। तब वह कन्या वायु रूप में बदलकर त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ चलीं। भैरवनाथ भी उनके पीछे भागे। माना जाता है कि तभी मां की रक्षा के लिए वहां पवनपुत्र हनुमान पहुंच गए। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए। फिर वहीं एक गुफा में गुफा में प्रवेश कर माता ने नौ माह तक तपस्या की। हनुमानजी ने पहरा दिया।
फिर भैरव नाथ वहां आ धमके। उस दौरान एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिसे एक कन्या समझ रहा है, वह आदिशक्ति जगदम्बा है, इसलिए उस महाशक्ति का पीछा छोड़ दे। भैरवनाथ ने साधु की बात नहीं मानी। तब माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। यह गुफा आज भी अर्द्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है। अर्द्धकुमारी के पहले माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहां माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था।
अंत में गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण किया और भैरवनाथ वापस जाने का कह कर फिर से गुफा में चली गईं, लेकिन भैरवनाथ नहीं माना और गुफा में प्रवेश करने लगा। यह देखकर माता की गुफा कर पहरा दे रहे हनुमानजी ने उसे युद्ध के लिए ललकार और दोनों का युद्ध हुआ। युद्ध का कोई अंत नहीं देखकर माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का वध कर दिया।
कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने मां से क्षमादान की भीख मांगी। माता वैष्णो देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी। तब उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक कोई भक्त, मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।
निर्माण
उपरोक्त कथा को वैष्णो देवी के भक्त श्रीधर से जोड़कर भी देखा जाता है। 700 वर्ष से भी अधिक समय पहले कटरा से कुछ दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। वे नि:संतान और गरीब थे। लेकिन वे सोचा करते थे कि एक दिन वे माता का भंडारा रखेंगे। एक दिन श्रीधर ने आस-पास के सभी गांव वालों को प्रसाद ग्रहण करने का न्योता दिया और भंडारे वाले दिन श्रीधर अनुरोध करते हुए सभी के घर बारी-बारी गए ताकि उन्हें खाना बनाने की सामग्री मिले और वह खाना बनाकर मेहमानों को भंडारे वाले दिन खिला सके। जितने लोगों ने उनकी मदद की वह काफी नहीं थी क्योंकि मेहमान बहुत ज्यादा थे।
वह सोच रहे थे इतने कम सामान के साथ भंडारा कैसे होगा। भंडारे के एक दिन पहले श्रीधर एक पल के लिए भी सो नहीं पा रहे थे यह सोचकर की वह मेहमानों को भोजन कैसे करा सकेंगे। वह सुबह तक समस्याओं से घिरे हुए थे और बस उसे अब देवी मां से ही आस थी। वह अपनी झोपड़ी के बाहर पूजा के लिए बैठ गए, दोपहर तक मेहमान आना शुरू हो गए थे, श्रीधर को पूजा करते देख वे जहां जगह दिखी वहां बैठ गए। सभी लोग श्रीधर की छोटी-सी कुटिया में आसानी से बैठ गए।
श्रीधर ने अपनी आंखें खोली और सोचा की इन सभी को भोजन कैसे कराएंगे, तब उसने एक छोटी लड़की को झोपडी से बाहर आते हुए देखा जिसका नाम वैष्णवी था। वह भगवान की कृपा से आई थी, वह सभी को स्वादिष्ट भोजन परोस रही थी, भंडारा बहुत अच्छी तरह से संपन्न हो गया था। भंडारे के बाद, श्रीधर उस छोटी लड़ी वैष्णवी के बारे में जानने के लिए उत्सुक थे, पर वैष्णवी गायब हो गई और उसके बाद किसी को नहीं दिखी। बहुत दिनों के बाद श्रीधर को उस छोटी लड़की का सपना आया उसमें स्पष्ट हुआ कि वह मां वैष्णोदेवी थी। माता रानी के रूप में आई लड़की ने उसे गुफा के बारे बताया और चार बेटों के वरदान के साथ उसे आशीर्वाद दिया। श्रीधर एक बार फिर खुश हो गए और मां की गुफा की तलाश में निकल पड़े और कुछ दिनों बाद उन्हें वह गुफा मिल गई। तभी से वहां पर माता के दर्शन के लिए श्रद्धालु जाने लगे।
वैष्णो देवी या श्री माता वैष्णो देवी मंदिर, हिन्दू मान्यता अनुसार, माँ आदिशक्ति दुर्गा स्वरूप माँ वैष्णो देवी जिन्हे त्रिकुटा और वैष्णवी नाम से भी जाना जाता है, देवी को समर्पित मुख्य पवित्रतम हिन्दू मंदिरों में से एक है, जो भारत केेे जम्मू और कश्मीर के जम्मू सम्भाग में त्रिकुट पर्वत पर स्थित है। इस धार्मिक स्थल की आराध्य देवी, वैष्णो देवी को सामान्यतः माता रानी, वैष्णवी, दुर्गा तथा शेरावाली माता जैसे अनेक नामो से भी जाना जाता है। यहा पर आदिशक्ति स्वरूप महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती पिंडी रूप मे त्रेता युग से एक गुफा मे विराजमान है और माता वैष्णो देवी स्वयं यहां पर अपने शाश्वत निराकार रूप मे विराजमान है। वेद पुराणो के हिसाब से ये मंदिर 108 शक्ति पीठ मे भी शामिल है। यहां पर लोग 14 किमी की चढ़ाई करके भवन तक पहुँचते है। घोड़ा, पिठु, पालकी, हेलिकॉप्टर, ट्राम रोपवे जैसी अनेक सुविधाए यहाँ पर उपलब्ध है। यहा पर पहुँचने के लिए मुख्य दो साधन है - रेलवे और रोडवे जिसमे से जादातार लोग रेलवे अर्थार्थ ट्रेन से आना पसंद करते है। यहा का रेलवे स्टेशन श्री माता वैष्णो देवी कटरा पूरे भारत से जुड़ा हुआ है।
यह मंदिर, जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू के रियासी मण्डल में कटरा नगर के समीप अवस्थित है। यह उत्तरी भारत में सबसे पूजनीय पवित्र स्थलों में से एक है। मंदिर, 5,200 फ़ीट की ऊंचाई पर, कटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की दूरी पर स्थित है। प्रतिवर्ष, लाखों तीर्थ यात्री, इस मंदिर का दर्शन करते हैं
और यह भारत में कुछ सबसे मुख्य और सर्वाधिक देखे जाने वाले तीर्थस्थलों मे से एक है। इस मंदिर की देख-रेख श्री माता वैष्णो देवी तीर्थ मंडल नामक न्यास द्वारा की जाती है। माता वैष्णो देवी के प्रहरी भगवान शंकर के अवतार हनुमान जी हैं और हनुमान जी के साथ भगवान शिव के ही अवतार भैरव बाबा भी हैं। उत्तर भारत मे माँ वैष्णो देवी सबसे प्रसिद्ध सिद्धपीठ है उसके उपरांत सहारनपुर की शिवालिक पहाड़़ियों मे स्थित शाकम्भरी देवी सबसे सर्वप्रमुख प्राचीन सिद्धपीठ है। शाकम्भरी पीठ मे माँ के दर्शन से पहले भैरव के दर्शन करने पड़ते है। वैष्णो देवी मंदिर जाने के सबसे अच्छा समय का चयन जरूर करें, ताकि आपको कम से कम परेशानी हो, क्योंकि वहाँ भीड़ आदि बहुत होती है।
भैरोनाथ मंदिर
मान्यतानुसार जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने भैरोनाथ का वध किया, वह स्थान 'भवन' के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर देवी महाकाली (दाएँ), महासरस्वती (बाएँ) और महालक्ष्मी देवी (मध्य), पिण्डी के रूप में गुफा में विराजित है, इन तीनों पिण्डियों के इस सम्मिलित रूप को वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।
मान्यतानुसार, भैरोनाथ का वध करने पर उसका शीश भवन से 3 किमी दूर जिस स्थान पर गिरा, आज उस स्थान भैरो मंदिर के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरोनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने देवी से क्षमा माँगी। मान्यतानुसार, वैष्णो देवी ने भैरोनाथ को वरदान देते हुए कहा कि "मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।" भैरो बाबा का यह मंदिर, वैष्णोदेवी मंदिर से ३ किमी की दूरी पर स्थित है।
जानकारियां - Information | |
स्थापना | पंडित श्रीधर |
निर्माण | पांडव |
द्वारा उद्घाटन | 1846 में महाराजा गुलाब सिंह |
समर्पित | वैष्णो देवी, महाकाली एवं महासरस्वती |
देख-रेख संस्था | श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड |
फोटोग्राफी | नहीं |
नि:शुल्क प्रवेश | हाँ |
समय | सुबह 5.30 बजे से रात 9 बजे तक |
पूजा का समय |
मंगला आरती सुबह ५:०० बजे, श्रृंगार आरती (सुबह ) ७:०० बजे, भोग आरती (दोपहर) १:०० बजे, श्रृंगार आरती (शाम ) ७:०० बजे |
घूमने का सबसे अच्छा समय | मार्च और अक्टूबर के महीनों के बीच |
वेबसाइट | http://www.maavaishnodevi.org/ |
फोन | 9906019494 |
कैसे पहुचें - How To Reach | |
पता | |
सड़क/मार्ग | कश्मीर राज्य सड़क परिवहन निगम की बसें नियमित अंतराल पर जम्मू से कटरा और कटरा से जम्मू के बीच चलती हैं। |
रेलवे स्टेशन | उधमपुर रेलवे स्टेशन कटरा से 44 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है |
हवा मार्ग | जम्मू हवाई अड्डा कटरा से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है |
नदी | N/A |
निर्देशांक | 33°01′48″N 74°56′54″E / 33.0299°N 74.9482°E |
वैष्णो देवी मंदिर - गूगल के मानचित्र पर