मणिकर्णिका घाट - Manikarnika Ghat

मणिकर्णिका घाट भारत के वाराणसी शहर में स्थित एक प्रमुख और पवित्र घाट है। यह गंगा नदी के किनारे पर स्थित है और यहाँ हिन्दू धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार किया जाता है। मणिकर्णिका घाट को मान्यता है कि यहाँ अंतिम विदाई ली जाती है और व्यक्ति के शव का अंतिम संस्कार किया जाता है। यहाँ लोग अपने पितृदेवों को उनकी आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए आते हैं। यहाँ के शास्त्रों में मान्यता है कि जो व्यक्ति मृत्यु के समय यहाँ की धरती को छूता है, उसकी आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। मणिकर्णिका घाट धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल है जो भारतीय समाज में गहरी मान्यता रखता है।

मणिकर्णिका घाट - Manikarnika Ghat

मणिकर्णिका घाट वाराणसी में गंगानदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध घाट है। एक मान्यता के अनुसार माता पार्वती जी का कर्ण फूल यहाँ एक कुंड में गिर गया था, जिसे ढूढने का काम भगवान शंकर जी द्वारा किया गया, जिस कारण इस स्थान का नाम मणिकर्णिका पड़ गया। एक दूसरी मान्यता के अनुसार भगवान शंकर जी द्वारा माता सती जी के पार्थिव,,शरीर का अग्नि संस्कार किया गया, जिस कारण इसे महाशमशान भी कहते हैं। आज भी अहर्निश यहाँ दाह संस्कार होते हैं। नजदीक में काशी की आद्या शक्ति पीठ विशालाक्षी जी का मंदिर विराजमान है। एक मान्यता के अनुसार स्वयं यहाँ आने वाले मृत शरीर के कानों में तारक मंत्र का उपदेश देते हैं , एवं मोक्ष प्रदान करते हैं । रंगभरी एकादशी (आमलकी) के दूसरे दिन बाबा विश्वनाथ जी के गौना होता है ऐसी मान्यता है इस दिन बाबा मसान होली खेलते हैं जो कि काशी में मणिकर्णिका एवं हरिश्चन्द्र धाट के अतिरिक्त पूरे विश्व में अन्यत्र और कहीं नहीं मनाया जाता है|इस घाट का निर्माण देवी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था यह सबसे प्रमुख घाट है यह घाट भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी जिले में स्थित है इस घाट की सबसे प्रमुख विशेषता है कि यहां पर यह जाने वाले दाह संस्कार से मोक्ष की प्राप्ति होती है'"भगवान महाकाल"की प्रमुख नगरी काशी में, मृत्यु होने से स्वर्ग मिलना निश्चित है, इसी कारण यह हिंदू धर्म का एक धार्मिक एवं बहुत ही मान्यता प्राप्त दाह संस्कार स्थल है,इसके चलन में एक कथा है कहा जाता है कि! बहुत पुराने समय से आज तक यहां की चिता की ज्वाला अभी तक बुझी नहीं चाहे कितनी भी परेशानियां हो,फिर भी यहां पर एक के बाद एक चिता जलती रहती है

किम्वदंतियाँ


इस घाट से जुड़ी दो कथाएं हैं। एक के अनुसार भगवान विष्णु ने शिव की तपस्या करते हुए अपने सुदर्शन चक्र से यहां एक कुण्ड खोदा था। उसमें तपस्या के समय आया हुआ उनका स्वेद भर गया। जब शिव वहां प्रसन्न हो कर आये तब विष्णु के कान की मणिकर्णिका उस कुंड में गिर गई थी।

दूसरी कथा के अनुसार भगवाण शिव को अपने भक्तों से छुट्टी ही नहीं मिल पाती थी। देवी पार्वती इससे परेशान हुईं और शिवजी को रोके रखने हेतु अपने कान की मणिकर्णिका वहीं छुपा दी और शिवजी से उसे ढूंढने को कहा। शिवजी उसे ढूंढ नहीं पाये और आज तक जिसकी भी अन्त्येष्टि उस घाट पर की जाती है, वे उससे पूछते हैं कि क्या उसने देखी है?इस घाट की विशेषता ये हैं, कि यहां लगातार हिन्दू अन्त्येष्टि होती रहती हैं व घाट पर चिता की अग्नि लगातार जलती ही रहती है, कभी भी बुझने नहीं पाती। इसी कारण इसको महाश्मशान नाम से भी जाना जाता है। एक चिता की अग्नि समाप्त होने तक दूसरी चिता में आग लगा ही दी जाती है,24 घंटे ऐसा ही चलता है।वैसे तो लोग श्मसान घाटो में जाना नही चाहते, पर यहाँ देश विदेश से लोग इस घाट का दर्शन भी करने आते है।इस घाट पर ये एहसास होता है कि जीवन का अंतिम सत्य यही है। वाराणसी में 84 घाटों में सबसे चर्चित घाट में से एक है मणिकर्णिका घाट।