गीता जयंती - Geeta Jayanti

गीता जयंती" एक महत्वपूर्ण पर्व है जो हिन्दू धर्म में भगवद् गीता के महत्वपूर्ण सन्देशों की महिमा को मनाता है। यह पर्व भगवद् गीता के आदिवासियों के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के महाभारत युद्ध में अर्जुन से दिए गए अद्वितीय उपदेशों की स्मृति करता है

गीता जयंती - Geeta Jayanti

गीता जयंती को हिंदू धर्म में एक प्रमुख त्योहार के रूप में मनाया जाता है क्योंकि हिंदू पौराणिक मान्यता के अनुसार गीता स्वयं एक बहुत ही पवित्र ग्रंथ है जिसे स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को सुनाया था। गीता जयंती हर साल शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ भगवद गीता का जन्म हुआ था। इस दिन को मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है।

  • "गीता जयंती" भगवद् गीता के उपदेशों के महत्वपूर्ण सन्देशों को समर्पित करता है।
  • इस पर्व के दौरान, भगवद् गीता के श्लोकों का पाठ, स्तवन, संवाद और ध्यान किया जाता है।
  • गीता जयंती एक महत्वपूर्ण अवसर है जब लोग गीता के अद्वितीय ज्ञान का समाधान करते हैं और इसके शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारते हैं।
  • यह पर्व हिन्दू धर्म के अनुयायियों के बीच भगवद् गीता के महत्व को पुनरावलोकन करने का एक अच्छा अवसर प्रदान करता है।

"गीता जयंती" एक धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है जो भगवद् गीता के महत्वपूर्ण सन्देशों की महिमा को समर्पित करता है। यह पर्व भगवद् गीता के पाठ, स्तवन, संवाद, और ध्यान के माध्यम से भक्तों को भगवान के उपदेशों का समाधान करने का एक अवसर प्रदान करता है।

गीता जयंती के दिन, लोग भगवद् गीता के महत्व को गौरवपूर्ण रूप से समझते हैं और इसे अपने जीवन के मार्गदर्शक तत्व के रूप में स्वीकार करते हैं।

श्रीमद्भागवत गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं, गीता का दूसरा नाम गीतोपनिषद है। भगवत गीता के सभी 18 अध्याय के नाम..

अध्याय १: अर्जुनविषादयोगः - कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
अध्याय २: साङ्ख्ययोगः - गीता का सार
अध्याय ३: कर्मयोगः - कर्मयोग
अध्याय ४: ज्ञानकर्मसंन्यासयोगः - दिव्य ज्ञान
अध्याय ५: कर्मसंन्यासयोगः - कर्मयोग-कृष्णभावनाभावित कर्म
अध्याय ६: आत्मसंयमयोगः - ध्यानयोग
अध्याय ७: ज्ञानविज्ञानयोगः - भगवद्ज्ञान
अध्याय ८: अक्षरब्रह्मयोगः - भगवत्प्राप्ति
अध्याय ९: राजविद्याराजगुह्ययोगः - परम गुह्य ज्ञान
अध्याय १०: विभूतियोगः - श्री भगवान् का ऐश्वर्य
अध्याय ११: विश्वरूपदर्शनयोगः - विराट रूप
अध्याय १२: भक्तियोगः - भक्तियोग
अध्याय १३: क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोगः - प्रकृति, पुरुष तथा चेतना
अध्याय १४: गुणत्रयविभागयोगः - प्रकृति के तीन गुण
अध्याय १५: पुरुषोत्तमयोगः - पुरुषोत्तम योग
अध्याय १६: दैवासुरसम्पद्विभागयोगः - दैवी तथा आसुरी स्वभाव
अध्याय १७: श्रद्धात्रयविभागयोगः - श्रद्धा के विभाग
अध्याय १८: मोक्षसंन्यासयोगः - उपसंहार-संन्यास की सिद्धि