ऋषि पंचमी ( सामा पाचंम )

ऋषि पंचमी ( सामा पाचंम )

हर वर्ष भाद्रपद माह। के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन इस व्रत। को धारण किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार। स्त्रियों को। रसवालाममें पूजा पाठ और धार्मिक कार्यों को करने की मनाही होती है। अगर इन समय में। गलती से भी।

कोई पूजा अर्चना का सामान स्पर्श हो जाए। तो इससे। बहुत बड़ा पाप लगता है। इस तरह के पापों से। मुक्ति पाने के लिए। और अनेक प्रकार के जाने अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति पाने के। लिए ऋषि। पंचमी का व्रत किया जाता। है।

इस व्रत को। रखने से खासकर मासिक धर्म में हुई। गलतियों के प्रायश्चित के लिए इस। व्रत को धारण किया जाता है या सभी प्रकार के पापों की। निवृत्ति के लिए इस दिन जो की शब्द ऋषियों की पूजा की जाती है। सप्त ऋषियों में इस दिन जो कि।

काश्याब, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम जमदग्नि और वशिष्ठ। जिन सप्तऋषियों कि जो कि पूजा। करने का विधान है।

इस दिन विशेष प्रकार से जो कि। मध्याहन काल के समय। सप्तऋषियों की विशेष प्रकार। से पूजा करनी चाहिए और साथ में। जो कि। अरुन्धती माता की पूजा करनी चाहिए। इस दिन विशेष करके। गंगा नदी में स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करके अपने इष्ट देवता का कुलदेवता का पूजन करना चाहिए और मध्याहन काल के समय में वेदी बना करके।

करके पूरे विधि। विधान के साथ पूजन करना। चाहिए। इस दिन गंध, पुष्प, अक्षत। धूप, दीप आदि से पूजा करके नैवेद्य अर्पित करना चाहिए। इस दिन जो कि बिना बोयी हुई पृथवी।

में पैदा हुए शाका आदि का आहार करके ब्रम्हचर्य पालन पूर्वक व्रत करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। ब्राह्मणों को दान और दक्षिणा देनी चाहिए।

इस प्रकार से दत्त को धारण करने से सभी प्रकार के पापों का शमन होता है और सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति हो पाती है। तो आइए सुनते है। ऋषि पंचमी व्रत की कथा। तो आइए। सुनते है ऋषि पंचमी से जुड़ी हुई दोपौराणिक कथा।

प्राचीन काल में श्रीदास के नाम के एक राजा थे। उन्होने एक। बार ब्रम्हा जी से पूछा कि हे पितामह सर्वो व्रतों में श्रेष्ठ और तुरंत फल देने वाले व्रत का वर्णन आप मुझे करिए। ब्रम्हा जी ने कहा कि ही राजा। ऋषि पंचमी का व्रत उत्सव व्रतों में श्रेष्ठ और सब पापों को नष्ट करने वाला है।

विदर्भ में उत्तम नाम का एक सदाचारी ब्राह्मण के घर में दो संतान थी थी। एक पुत्र और एक कन्या विवाह योग्य होने पर उसने समान कुल शील वाले गुणवान वर के साथ साथ कन्या का विवाह कर दिया। पर कुछ ही। दिनों के बाद वह कन्या विधवा हो गई।

उसका दुख से अत्यंत दुखी हो। ब्राह्मण दंपत्ति अपनी उस कन्या समेत गंगाजी के किनारे कुटिया बनाकर रहने लगे। एक दिन सोती हुई। कन्या के शरीर में अचानक कीड़े पड़ गए। अपनी यह दशा देखकर कन्या ने अपने माता पिता से अपना दुख कहा। माता सुशीला ने जाकर।

पति से सब बातें कही और पूछा कि हे देव मेरे साथ भी कन्या की यह गति होने का क्या कारण है। उत्तम ने समाधी लगाकर इस घटना के कारणों पर विचार किया और अपनी पत्नी को बतलाया। कि पूर्व जन्म में यह कन्या ब्राह्मणीथी इसने रसवालाम होते हुए भी।

घर के बर्तनों को छुआ तथा इस जन्म में भी और लोगों। को ऋषि पंचमी का व्रत करते हुए देख कर घर कर स्वयं दत्त को नहीं किया इसी कारण इसके शरीर में कीड़े पड़ गए है। धर्मशास्त्रों में लिखा है कि रसवाला की स्त्री पहले। दिन चाण्डाल ने के समान माना।

दूसरे दिन गुरहघाटिनी के समान तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र रहती है फिर चौथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है यदि यह शुद्ध मन से अब भी ऋषि पंचमी का व्रत करेगी तो इसका दूध छूट जाएगा और यह अगले जन्म में अटल सौभाग्य को प्राप्त कर सकेगी।

पिता की आज्ञा से कन्या ने विधि पूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत किया और वह व्रत के प्रभाव से सारे दुखों से मुक्त हो गई अगले जन्म में। उसने।अटल सौभाग्य, धन धान्य और पुत्र प्राप्ति करके अक्षय सुख को होगा।

दूसरी कथा के अनुसार सतयुग में दर्भ नगरी मेंन ही दो नामक राजा हुए थे ह ऋषियों के समान थे उन्हीं के राजा ने एक कृषक सुमित्र था सकी पत्नी जैश्री अत्यंत पतिव्रता थी क समय वर्षा ऋतु में जब सकी पत्नी खेती के कामों में लगी हुई थी वह रसवाला हो गई।

उसको रसवाला होने का पता लग गया र भी वह घर के कामों में लगी रही समय के बाद वह दोनोंस्त्री पुरुष। अपनी अपनी आयु को भोगकर मृत्यु को प्राप्त हुए। जैश्री तो कुतिया बनी और सुमित्र।

कुरसवाला स्त्री के संपर्क में आने के कारण। बैल की योनि प्राप्त हुई क्योंकि वे तो दोष के अतिरिक्त इन दोनों का कोई अपराध नहीं था इसी कारण इन दोनों को अपने पूर्व जन्म का समस्त विवरण याद रहा वे दोनों कुतिया। और बैल के। रूप में उसी नगर। में अपने। बेटे सुचित्र। के यहां रहने लगे।

धर्मात्मा सुचित्र अपने अतिथियों का पूर्ण सत्कार करता था तथा अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने अपने घर पर ब्राह्मणों को। भोजन के लिए। नाना प्रकार के भोजन बनवाए।

जब उसकी स्त्री किसी काम के लिए रसोई घर से बाहर गई हुई थी तो एक सर्प ने रसोई की खीर के। बर्तन। में विष। को वमन कर दिया

कुतिया के स्वरूप में सुचित्र की मां कुछ दूर से यह सब देख रही थी कि पुत्र की बहू के आने पर उसने पुत्र को ब्रह्म हत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में मुंह डाल।

दिया सुचित्र की पत्नी चन्द्रवती से कुतिया का यह कृत्य देखा नहीं गया और और उसने चूल्हे में से जलती हुई लकड़ी निकाल कर का कुतिया को मारी बिचारी कुतिया मार खाकर इधर उधर भागने लगी चौके में जो जूठन। आदि बची रहती थी, वह। सब सुचित्र की बहू उस। कुतिया को दाल देतीथी, लेकिन क्रोध। के। कारण उसने। वह भी बाहर फिकवा दिया।

सब खाने का सामान फिकवा कर बर्तन साफ करके दुबारा खाना बनाकर ब्राह्मणों को खिलाया रात्रि के समय भूख प्यास से व्याकुल होकर वह कुतिया बैल के रूप में रह रहे अपने पति के पास गई और बोली कि हे स्वामी आज तो मैं भूख से मरी जा रही हूँ वैसे तो मेरा पुत्र मुझे रोज खाने को देता था था, लेकिन आज मुझे कुछ नहीं मिला सर्प के विष वाले खीर के बर्तन को अनेक ब्रम्ह हत्या के भय से उनके न। खाने योग्य कर दिया था इसी कारण उसकी बहू ने मुझे मारा और खाने को कुछ। भी नहीं दिया।

तब वह बैल बोला कि हे बद्री तेरे पापों के कारण तुम्हें भी इस योनि में आना पड़ा और आज भी बोझा ढोते ढोते। मेरी कमर टूट गई है आज मैं भी खेत में। दिन भर हल जुता रहा मेरे पुत्र ने आज मुझे भी भोजन नहीं दिया और मुझे मारा भी।

मुझे इस। प्रकार का कष्ट देकर उसने इस श्राद्ध। को निष्फल कर दिया अपने माता पिता की इन बातों को सुचित्र। सुन रहा था।

उसने उसी समय दोनों को भरपेट भोजन कराया और फिर उनके दुख से दुखी होकर वन की ओर चल पड़ा वन में जाकर ऋषियों से पूछा कि मेरे माता पिता किन कर्मों के कारण इस नीच योनियों को प्राप्त हुए हैं और अब किस प्रकार से इनको।

छुटकारा मिल सकता है तब सर्वतमा ऋषि बोले तुम इनकी मुक्ति के लिए पत्नी सहित ऋषि पंचमी का व्रत धारण करो तथा उसका फल अपने माता पिता को दो भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष पंचमी को मुख शुद्ध करके मध्याहन नदी के पवित्र। जल में स्नान करना और नए रेशमी कपड़े पहन कर अरुन्धती सहित शब्द ऋषियों का। पूजन करना इतना सुनकर सुचित्र अपने घर लौट आया और अपनी पत्नी सहित विधि विधान से पूजन व्रत किया उसके पुण्य से माता पिता।

दोनों पशुओं योनियों से छूट गए इसलिए जो स्त्रियां श्रद्धा पूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत करती हैं, वह समस्त सांसारिक सुखों को भोगकर अंत में वह वैकुंठ धाम को जाती है तो बोलिए सप्तऋषियों की जय अरुन्धती माता की जय सर्वदेव देवताओं की जय इसी प्रकार से जो भी सच्ची श्रद्धा के साथ नियम और निष्ठा के साथ ऋषिपंचमी का व्रत करते।

हैं इसलिए सप्तऋषियों की पूजा करते हैं साथ में अरुन्धती माता की पूजा करते हैं तो इस व्रत के पुण्य प्रभाव से उनके सभी प्रकार के पाप और ताप नष्ट हो जाते हैं तथा सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति हो पाती है