त्र्यंबकेश्वरज्योर्तिलिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही विराजित हैं यही इस ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं।
पौराणिक कथा
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में शिवपुराण में यह कथा वर्णित है
एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियाँ किसी बात पर उनकी पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपमान करने के लिए प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके निमित्त भगवान् श्रीगणेशजी की आराधना की।
उनकी आराधना से प्रसन्न हो गणेशजी ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा उन ब्राह्मणों ने कहा- ‘प्रभो! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो किसी प्रकार ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दें।’ उनकी यह बात सुनकर गणेशजी ने उन्हें ऐसा वर न माँगने के लिए समझाया। किंतु वे अपने आग्रह पर अटल रहे।
अंततः गणेशजी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी। अपने भक्तों का मन रखने के लिए वे एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत में जाकर रहने लगे। गाय को फसल चरते देखकर ऋषि बड़ी नरमी के साथ हाथ में तृण लेकर उसे हाँकने के लिए लपके। उन तृणों का स्पर्श होते ही वह गाय वहीं मरकर गिर पड़ी। अब तो बड़ा हाहाकार मचा।
सारे ब्राह्मण एकत्र हो गो-हत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दुःखी थे। अब उन सारे ब्राह्मणों ने कहा कि तुम्हें यह आश्रम छोड़कर अन्यत्र कहीं दूर चले जाना चाहिए।
गो-हत्यारे के निकट रहने से हमें भी पाप लगेगा। विवश होकर ऋषि गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ वहाँ से एक कोस दूर जाकर रहने लगे। किंतु उन ब्राह्मणों ने वहाँ भी उनका रहना दूभर कर दिया। वे कहने लगे- गो-हत्या के कारण तुम्हें अब वेद-पाठ और यज्ञादि के कार्य करने का कोई अधिकार नहीं रह गया।
अत्यंत अनुनय भाव से ऋषि गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि आप लोग मेरे प्रायश्चित और उद्धार का कोई उपाय बताएँ।
तब उन्होंने कहा- गौतम! तुम अपने पाप को सर्वत्र सबको बताते हुए तीन बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करो। फिर लौटकर यहाँ एक महीने तक व्रत करो। इसके बाद ‘ब्रह्मगिरी’ की 101 परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी शुद्धि होगी अथवा यहाँ गंगाजी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो।
इसके बाद पुनः गंगाजी में स्नान करके इस ब्रह्मगीरि की 11 बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंगों को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा।
ब्राह्मणों के कथनानुसार महर्षि गौतम वे सारे कार्य पूरे करके पत्नी के साथ पूर्णतः तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न हो भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा- ‘भगवान् मैं यही चाहता हूँ कि आप मुझे गो-हत्या के पाप से मुक्त कर दें।
भगवान् शिव ने कहा ‘गौतम ! तुम सर्वथा निष्पाप हो। गो-हत्या का अपराध तुम पर छल पूर्वक लगाया गया था। छल पूर्वक ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दण्ड देना चाहता हूँ।
इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि प्रभु! उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझकर उन पर आप क्रोध न करें। बहुत से ऋषियों, मुनियों और देव गणों ने वहाँ एकत्र हो गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान् शिव से सदा वहाँ निवास करने की प्रार्थना की।
वे उनकी बात मानकर वहाँ त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थित हो गए। गौतमजी द्वारा लाई गई गंगाजी भी वहाँ पास में गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं। यह ज्योतिर्लिंग समस्त पुण्यों को प्रदान करने वाला है।
निर्माण
गोदावरी नदी के किनारे स्थित त्र्यंबकेश्वर मंदिर काले पत्थरों से बना है। मंदिर का स्थापत्य अद्भुत है। इस मंदिर के पंचक्रोशी में कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की पूजा संपन्न होती है। जिन्हें भक्तजन अलग-अलग मुराद पूरी होने के लिए करवाते हैं।
इस प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी अर्थात नाना साहब पेशवा ने करवाया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1755 में शुरू हुआ था और 31 साल के लंबे समय के बाद 1786 में जाकर पूरा हुआ। कहा जाता है कि इस भव्य मंदिर के निर्माण में करीब 16 लाख रुपए खर्च किए गए थे, जो उस समय काफी बड़ी रकम मानी जाती थी।
जानकारियां – Information | |
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निर्माण | तीसरे पेशवा बालाजी बाजीराव (1740-1760) |
द्वारा उद्घाटन | – |
समर्पित | त्र्यंबकेश्वरज्योर्तिलिंग (बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक) |
देख-रेख संस्था | श्री त्र्यंबकेश्वर देवस्थान ट्रस्ट, त्र्यंबकेश्वर |
फोटोग्राफी | नहीं |
नि:शुल्क प्रवेश | हाँ |
समय | सुबह 5.30 बजे से रात 9 बजे तक |
पूजा का समय | सुबह 7:00 बजे, दोपहर 1:00 बजे, शाम 4:30 बजे |
दर्शन में लगने वाला समय | 2-3 घंटे |
घूमने का सबसे अच्छा समय | अक्टूबर से मार्च (सर्दी): दर्शन और घूमने के लिए सुखद मौसम। श्रावण मास (जुलाई-अगस्त): अत्यंत शुभ, लेकिन भीड़ अधिक होती है। महाशिवरात्रि: भव्य उत्सव का आयोजन होता है। कार्तिक मास और कुंभ मेला: विशेष आध्यात्मिक महत्व। मॉनसून (जून-सितंबर) में जाने से बचें, क्योंकि इस दौरान भारी वर्षा होती है। |
वेबसाइट | https://badrinath-kedarnath.gov.in/ |
फोन | 02594 233 215 |
बुनियादी सेवाएं | प्रसादम,होटल,बैठने की प्रसादम,होटल,बैठने की बेंचेस,पार्किंग,डाइनिंग हॉल |
कैसे पहुचें – How To Reach | |
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पता | त्र्यंबकेश्वर, नासिक, महाराष्ट्र – 422212, भारत |
सड़क/मार्ग | महाराष्ट्र राज्य परिवहन (MSRTC) की बसें नासिक से त्र्यंबकेश्वर के लिए नियमित रूप से चलती हैं। त्र्यंबकेश्वर सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। नासिक से: 28 किमी (कैब/बस द्वारा 45 मिनट) मुंबई से: 200 किमी (5-6 घंटे की यात्रा) पुणे से: 240 किमी (6-7 घंटे की यात्रा) शिर्डी से: 120 किमी (3 घंटे की यात्रा) 🚩 ध्यान दें: नासिक से त्र्यंबकेश्वर की यात्रा के लिए टैक्सी, बस और निजी वाहन सबसे सुविधाजनक विकल्प हैं। |
रेलवे स्टेशन | निकटतम रेलवे स्टेशन नासिक रोड रेलवे स्टेशन (Nashik Road – 28 किमी) है। यहाँ से त्र्यंबकेश्वर के लिए टैक्सी, बस या ऑटो आसानी से मिल सकते हैं। |
हवा मार्ग | निकटतम हवाई अड्डा ओझर एयरपोर्ट, नासिक (ओझर – 30 किमी) और छत्रपति शिवाजी इंटरनेशनल एयरपोर्ट, मुंबई (200 किमी) है। एयरपोर्ट से त्र्यंबकेश्वर तक टैक्सी या बस उपलब्ध हैं। |
ट्रेकिंग | गौरीकुंड से केदारनाथ:गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर तक 16 किलोमीटर की ट्रेकिंग करनी होती है। यह ट्रेकिंग मार्ग काफी सुंदर और धार्मिक महत्व का है। मार्ग पर कई ठहराव और भोजन की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। |
निर्देशांक | 19.9333° N / 73.5333° E |