पूरा नाम: आदि शंकराचार्य
जन्म: 788 ई. (अनुमानित)
जन्म स्थान: कालड़ी, केरल, भारत
माता-पिता: माता – आर्यम्बा, पिता – शिवगुरु
संप्रदाय: अद्वैत वेदांत
गुरु: गोविंद भगवत्पाद
मुख्य ग्रंथ: ब्रह्मसूत्र भाष्य, भगवद गीता भाष्य, उपनिषद भाष्य
निधन: 820 ई. (अनुमानित), केदारनाथ, उत्तराखंड
जीवन परिचय – Biography
आदि शंकराचार्य भारत के महान दार्शनिक और धर्मगुरु थे, जिन्होंने अद्वैत वेदांत दर्शन का प्रचार किया। उनका जन्म केरल के कालड़ी गांव में हुआ था। वे बचपन से ही बहुत मेधावी थे और छोटी उम्र में ही उन्होंने वेदों और उपनिषदों का गहन अध्ययन कर लिया था।
अद्वैत वेदांत का प्रचार – Propagation of Advaita Vedanta
शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत दर्शन को लोकप्रिय बनाया, जो यह मानता है कि ब्रह्म (परम सत्य) और आत्मा एक ही हैं। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में भ्रमण कर शास्त्रार्थ किए और हिंदू धर्म के पतन को रोकने के लिए वैदिक परंपराओं को पुनर्स्थापित किया।
चार पीठों की स्थापना – Establishment of Four Monasteries
आदि शंकराचार्य ने भारत के चार कोनों में चार मठों (पीठों) की स्थापना की, जो आज भी हिंदू धर्म के प्रमुख केंद्र हैं:
- शृंगेरी पीठ – कर्नाटक
- द्वारका पीठ – गुजरात
- ज्योतिर्मठ (जोशीमठ) पीठ – उत्तराखंड
- गोवर्धन पीठ – पुरी, ओडिशा
मुख्य रचनाएँ – Major Works
उन्होंने हिंदू धर्मग्रंथों पर महत्वपूर्ण भाष्य (टिप्पणियां) लिखीं, जिनमें शामिल हैं:
- ब्रह्मसूत्र भाष्य
- भगवद गीता भाष्य
- दस उपनिषदों पर भाष्य
- विवेक चूड़ामणि
- सौंदर्य लहरी
- भज गोविंदम
हिंदू धर्म में योगदान – Contribution to Hinduism
- सनातन धर्म को संगठित किया और वैदिक परंपराओं को पुनर्जीवित किया।
- विभिन्न मतों के विद्वानों से शास्त्रार्थ कर अद्वैत वेदांत की श्रेष्ठता सिद्ध की।
- मठों की स्थापना कर गुरु-शिष्य परंपरा को सुदृढ़ किया।
- हिंदू धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थलों की यात्रा कर आध्यात्मिक एकता स्थापित की।
महापरिनिर्वाण – Mahaparinirvana (Final Liberation)
कहा जाता है कि 32 वर्ष की अल्पायु में केदारनाथ में उन्होंने समाधि ले ली। उनकी शिक्षाएं आज भी हिंदू धर्म और भारतीय दर्शन के लिए मार्गदर्शक बनी हुई हैं।
निष्कर्ष – Conclusion
आदि शंकराचार्य भारतीय संस्कृति, धर्म और दर्शन के महान प्रतीक थे। उनके द्वारा स्थापित मठ और उनके लिखे ग्रंथ आज भी लाखों लोगों को आध्यात्मिक दिशा प्रदान कर रहे हैं। उनका अद्वैत वेदांत दर्शन यह सिखाता है कि आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं है, और मोक्ष का मार्ग ज्ञान और भक्ति से होकर गुजरता है।
“ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापरः।”
(ब्रह्म ही सत्य है, यह संसार मिथ्या है, और जीव ब्रह्म से अलग नहीं है।)
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